Tuesday 11 March 2014

आरती कुंजबिहारी की








कृष्ण जी की आरती – Krishna Ji ki Aarti




आरती कुंजबिहारी की





आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥





गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।





गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली;



भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;

ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…





कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।


गगन सों सुमन रासि बरसै;



बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;

अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…





जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा;



बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;

चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…





चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;



हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;

टेर सुन दीन भिखारी की ॥ 
 आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥


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